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Kaalsarp Dosh


कालसर्प दोष


कुंडली में कालसर्प दोष के होने का मुख्य कारण पूर्वजन्म में किये गये पाप या फिर पित्र दोष होते हैं | कुंडली में जन्म लग्न चक्र में जब सभी गृह राहू और केतु के बीच में आ जाते है तो पूर्ण रूप से घातक कालसर्प दोष बनता है |

इस प्रकार छाया गृह – राहू और केतु के कुंडली में विशेष स्थिति के कारण बनने वाले कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति जीवन भर कष्ट झेलता है | ऐसे व्यक्ति जीवन भर शारीरिक और मानसिक कठिनाइयाँ झेलते है | संतान संबंधी कष्ट होता है | पुत्र नही होता है | यदि संतान होती भी है तो वह बहुत ही कमजोर व बीमार होती है | आर्थिक रूप से भी जीवन भर स्थिति कमजोर ही बनी रहती है | इस प्रकार काल सर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति का जीवन बहुत ही संघर्ष शील होता है और जीवन भर उतार -चढ़ाव देखने को मिलते हैं |

ज्योतिष में 12 किस्म के कालसर्प योग माने गए हैं और यह पहले घर से शुरू होकर 12 घरों तक अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि अगर केतु पहले आ जाता है और राहु बाद में आता है तो कालसर्प का दोष समाप्त हो जाता है, लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूँ। 

कालसर्प दोष बारह प्रकार के होते हैं-
1. अनंत नामक कालसर्प योग - जब राहु प्रथम भाव में और केतु सप्तम भाव में होता है तब अनंत नामक कालसर्प योग बनता है। इस योग के कारण जातक में नास्तिकपन, गले और मुँह में रोग बनता है और पति तथा पत्नी का सुख नहीं मिलता है।
2. कुलिक नामक कालसर्प योग - यह योग राहु के द्वितीय घर में और केतु के अष्टम घर में बैठने पर बनता है। ऐसे में जातक विद्या, धन, परिवार में परेशान रहता है।
3. वासुकी नामक कालसर्प योग - यह राहु के तृतीया भाव में तथा केतु के नवम भाव में बैठने के कारण बनता है। इस योग में परिवार, दोस्त, भाई-बंधु और मित्र का सुख नहीं मिलता है।
4. शंखपाल नामक कालसर्प योग - राहु के चतुर्थ और केतु के दशम भाव में बैठने के कारण यह योग बनता है। इस योग के कारण माता-पिता, सास-ससुर का सुख कम मिलता है या आपस में बनती नहीं है। इनके शरीर में विषैले कीटाणुयुक्त घाव होते हैं और यह हमेशा दुःखी या चिड़चिड़े होते हैं।
5. पदम नामक कालसर्प योग - राहु के पंचम और केतु के एकादश भाव में बैठने के कारण यह योग बनता है। इस योग के कारण संतान सुख में परेशानी, विचारों में गड़बड़ी, कामोत्तेजक होकर जीवनभर अनावश्यक व्यय, अपयश और परेशानी भोगते रहते हैं।
6. महापदम नामक कालसर्प योग - राहु के छठे और केतु के बारहवें भाव में बैठने के कारण यह योग बनता है। इस योग में जातक के ऊपर जूठे इल्जाम लगे रहते हैं। उसके प्रत्येक कार्य में रुकावट आती है और बहुत मुश्किल के कोई काम बनता है।
7. कर्कोटक नामक कालसर्प योग - राहु के सप्तम और केतु के लग्न भाव में बैठने के कारण यह योग बनता है। इस योग में बहुत बुरी घटनाएं घटित होती हैं और व्यक्ति को अनेक बुरे परिणाम भोगने पड़ते हैं। घर परिवार कि चिंता रहती है। उदार शूल, जननेन्द्रियों के रोग एवं कोई न कोई रोग बना रहता है, जिस कारण ऑपरेशन तक की नौबत आ जाती है।
8. तक्षक नामक कालसर्प योग - राहु के अष्टम और केतु के द्वितीय भाव में बैठने के कारण यह योग बनता है। ऐसे जातक के भाग्योदय में रुकावट आती है। नौकरी में रुकावट आती है, आयु के लिए कष्टदायक होता है। ऑपरेशन, चीड़फाड़ अधिक होते हैं। अकाल मृत्यु का भय, मित्रों का आभाव और धन का नाश होता है।
9. शंखनाद नामक कालसर्प योग - राहु के अष्टम और केतु के द्वितीय भाव में बैठने के कारण यह योग बनता है। यह योग होने से भाग्य में रुकावट और धोखा होता है। यह योग जातक को नास्तिक भी होता है।
10. घातक नामक कालसर्प योग - राहु के दशम और केतु के चतुर्थ भाव में बैठने के कारण यह योग बनता है। ऐसे जातक को पैतृक संपत्ति बहुत मुश्किल से प्राप्त मिलती है अथवा संतान कष्ट और आजीविका में बहुत बहुत बाधा आती है और जातक अपना कार्य क्षेत्र बदलता रहता है। जातक के ऊपर ऋण चढ़ जाता है। इन्हें हृदय कष्ट अथवा असाध्य राज रोग लगे ही रहते हैं। श्वास और हृदय के रोगी ऐसी कुंडली वाले हो जाते हैं।
11. विषाक्त नामक कालसर्प योग - राहु के एकादश भाव में और केतु के पंचम भाव में बैठने के कारण यह योग बनता है। ऐसे जातक को पेट दर्द, संतान की चिंता या परेशानी, विद्या की तरफ से कष्ट बना रहता है। इन्हें जो रोग होता है वह लम्बी अवधि का होता है।
12. शेषनाग नामक कालसर्प योग - राहु के बारहवें भाव में और केतु के छठे भाव में बैठने के कारण यह योग बनता है। इस योग में जातक को नींद कम आती है और फिज़ूल का खर्च बना रहता है। जातक से सिर में दर्द होता है। जातक के सनकीपन रहता है।

यदि आपकी कुंडली कालसर्प दोष से पीड़ित है तो आप ज्योतिष वाणी में डॉ काजल मांगलिक को कुंडली दिखाकर सलाह ले सकते हैं।