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Pooja Se Sambandhit Jaroori Niyam


पूजा से सम्बंधित जरूरी नियम


सुखी और समृद्धिशाली जीवन के लिए देवी-देवताओं के पूजन की परम्परा काफी पुराने समय से चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में लोग इस परम्परा को निभाते हैं। पूजन से हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए अन्यथा पूजन का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है। यहाँ 30 ऐसे नियम बताये जा रहे हैं जो सामान्य पूजन में भी धयान रखना चाहिए। इन बातों का धयान रखने पर बहुत ही जल्द शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।

ये नियम इस प्रकार हैं-

  • सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का धयान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।
  • शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
  • माँ दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है।
  • सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
  • तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोडना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाय ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान् द्वारा स्वीकार नहीं किये जाते हैं।
  • शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए। सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए। इसके बाद प्रातः 9 से 10 बजे तक दूसरी बार का पूजन। दोपहर में तीसरी बार पूजन करना चाहिए। इस पूजन के बाद भगवान् को शयन करवाना चाहिए। शाम के समय चार-पांच बजे पुनः पूजन और आरती। रात को 8-9 बजे शयन आरती करनी चाहिए। जिन घरों में नियमित रूप से पांच बार पूजन किया जाता है, वहां सभी देवी-देवताओं का वास होता है और ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।
  • प्लास्टिक की बोतल में या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एलुमिनियम और लोहे से बने बर्तन। गंगाजल ताम्बे के बर्तन में रखना शुभ रहता है।
  • स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यदि इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहाँ शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती है।
  • मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ती के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए।
  • केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए।
  • किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता सा लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी। 
  • दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए।
  • माँ लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल अर्पित किया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुनः चढ़ा सकते हैं।
  • शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। अतः इन्हें जल छिड़क कर पुनः शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है।
  • तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़क कर पुनः भगवान् को अर्पित किया जा सकता है।
  • आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान् को अर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए।
  • ताम्बे के बर्तन में चन्दन, घिसा हुआ चन्दन या चादन का पानी नहीं रखना चाहिए।
    हमेशा इस बात का ध्यान रखें की कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलाते हैं, वे रोगी होते हैं।

  • बुधवार और रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए।

  • पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर करनी चाहिए। यदि संभव हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें।
    पूजा करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।

  • घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।
    पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद उसी स्थान पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएं अवश्य करनी चाहिए।
    रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रांति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए।

भगवान् की आरती करते समय ध्यान रखें ये बातें- 

  • भगवान् के चरणों की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान् के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए।

  • पूजाघर में मूर्तियां 1, 3, 5, 7, 9, 11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी, सरस्वती जी, लक्ष्मी जी की मूर्तियां घर में नहीं होनी चाहिए।

  • गणेश या देवी प्रतिमा तीन, शिवलिंग दो, शालिग्राम दो, सूर्य प्रतिमा दो, गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें।
    अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें। उपहार, कांच, लकड़ी एवं फाइबर की मूर्तियां य रखें एवं खंडित, जाली-कटी फोटो और टूटा कांच तुरंत हटा दें। शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गयी है। जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गयी है। इस सम्बन्ध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।

  • मंदिर के ऊपर भगवान् के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें। मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है। अपने पूज्य माता-पिता तथा पितरों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें, उन्हें घर के नैरऋत्य कोण में स्थापित करें।
    विष्णु की चार, गणेश की तीन, सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।

By Dr. Kaajal Manglik
article published in Future Samachar Magazine, Year 21, No. 6, June, 2017, pg. 45-47